पत्नी पीड़ित

प्रलय की आंधी बनकर ,
 एकदम सुनामी बनकर ,
मेरे जीवन में तुम आई हो ,
बिल्कुल तूफानी बनकर ,
 रूह कोई शैतानी बनकर ,
मेरे जीवन पर हो छाई हो ,
अब तो मेरे सपनो में भी आकर ,
अकसर तुम मुझे डराती हो ,
ये क्या किया , ये क्या किया ,
कहकर चिल्लाती हो ,
तुम्हारा कहा सब कुछ किया ,
फिर भी तुम चिल्लाती हो ,
कई बार कुक्कर में मुझसे,
 सिटी चार लगवाती हो ,
दो रोटी खिलाकर मुझको,
 दो सौ बात सुनाती हो ,
सास -बहु के किस्सों से तुम ,
डेली मुझे पकाती हो ,
चिराग़ में बंद जिन्न के जैसे ,
तुम हमको गिस्से जाती हो ,
क्या हुक्म है मेरे आक्का ,
हम यही कहकर रह जाते है ,
तुम्हारे हर आर्डर पर हम ,
अपना शीश झुकाते है ,
फिर भी अब तो हमको ,
आदत सी हो गई तुम्हारी ,
चार बातें सुने बिना तुमसे,
 रोटी नहीं पचती हमारी ,
हे ! यम की बेटी ,
हुंकार भरो ना तुम ,
हम बलि के बकरे है,
 स्वीकार करो तुम।

By- Ritesh Goel 'Besudh'

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